नदियों की लूट पर अदालत की नाराज़गी, अवैध खनन रोकने को डिजिटल मॉनिटरिंग और कॉरपोरेशन का आदेश
*ब्यूरो न्यूज स्वतन्त्र डगंरीया*
नैनीताल, 17 सितम्बर 2025
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश की नदियों में बढ़ते अवैध खनन पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि खनन माफियाओं की मनमानी अब और बर्दाश्त नहीं होगी। खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह दो सप्ताह के भीतर एक रोबस्ट एक्शन प्लान तैयार करे, जिसमें प्रदेश का खुद का माइनिंग कॉरपोरेशन गठित करने की रूपरेखा हो।
अदालत की सख्त टिप्पणियाँ
अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि नदियों से उपखनिजों की अनियंत्रित निकासी से पर्यावरण असंतुलित हो रहा है और प्राकृतिक संसाधनों की सीधी लूट हो रही है। यही नहीं, सीमावर्ती इलाकों से उपखनिजों की तस्करी कर पड़ोसी राज्यों तक पहुँचाने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। इससे न केवल सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है।
डिजिटल निगरानी होगी अनिवार्य
न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि अवैध खनन और खनिज परिवहन पर अंकुश लगाने के लिए अब डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करना होगा। इसमें जीपीएस ट्रैकिंग, ऑनलाइन ई-परमिट, रीयल टाइम रिपोर्टिंग और सीमाओं पर चेकपोस्ट की डिजिटल निगरानी जैसे प्रावधान शामिल होने चाहिए।
पूर्व आदेशों का कड़ाई से पालन
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि अदालत ने सुनवाई में केंद्र सरकार की खनन नियमावली और सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के पूर्व में दिए गए आदेशों का हवाला देते हुए बरसात के बाद नदियों में जमा उपखनिजों के दोहन पर जोर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इन नियमों का पालन न होना सरकार की लापरवाही दर्शाता है।
बागेश्वर से उठा मामला, पूरे प्रदेश तक पहुँचा
गौरतलब है कि बागेश्वर जिले में अवैध खनन को लेकर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। इसके अलावा प्रदेशभर से संबंधित कई जनहित याचिकाएँ भी इस मामले में जोड़ी गईं। अदालत ने कहा कि अब सरकार को खनन पर नियंत्रण और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी ही होगी।
आगे का रास्ता
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है। तब तक राज्य सरकार को कॉरपोरेशन गठन, डिजिटल निगरानी प्रणाली और अवैध खनन रोकने के उपायों पर आधारित विस्तृत एक्शन प्लान अदालत में दाखिल करना होगा। अदालत ने संकेत दिया है कि यदि तय समय सीमा में ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो न्यायालय कड़े कदम उठा सकता है।