लोकायुक्त ‘लापता’, फिर भी 1.80 करोड़ फूंक गई सरकार! उत्तराखंड में सरकारी बर्बादी का बड़ा खुलासा

 

ब्यूरो न्यूज़ स्वतंत्र डंगरिया

 

देहरादून। उत्तराखंड की सरकारी व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने उस सरकारी दफ्तर पर ₹1.80 करोड़ खर्च कर दिए जहां ना कोई लोकायुक्त है, ना कोई जांच चल रही, ना ही कोई न्यायिक कार्य! सूचना का अधिकार (RTI) के तहत सामने आए खुलासे के अनुसार, लोकायुक्त कार्यालय में मात्र 7 कर्मचारी तैनात हैं, फिर भी करोड़ों का बजट सालाना खर्च हो रहा है।

 

RTI में खुलासा – एक साल में ₹1.80 करोड़ स्वाहा!

 

उत्तराखंड किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दाखिल आरटीआई में सामने आया है कि वर्ष 2024–25 में सरकार ने लोकायुक्त कार्यालय के संचालन पर ₹1.80 करोड़ खर्च कर दिए

जबकि आज तक कोई लोकायुक्त नियुक्त ही नहीं किया गया है।

 

खर्च कहां हुआ?

 

7 कर्मचारियों की सैलरी

गाड़ियों का पेट्रोल

विज्ञापन खर्च

दफ्तर का किराया

और न जाने क्या-क्या…

 

जबकि वही दफ्तर पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा है, क्योंकि कोई लोकायुक्त कभी नियुक्त नहीं किया गया।

 

 

हाईकोर्ट की फटकार भी बेअसर!

 

इस मुद्दे को लेकर पहले भी उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया था।

2023 में कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति में देरी लोकपाल अधिनियम 2013 की धारा 63 का उल्लंघन है।

 

> कोर्ट ने आठ सप्ताह में नियुक्ति करने का आदेश दिया था, लेकिन सरकार ने आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

 

 

 

पहले भी फूका जा चुका है करोड़ों रुपया

 

2013 से अब तक ₹3.95 करोड़ से ज्यादा का बजट आवंटित

 

₹2.73 करोड़ पहले ही खर्च हो चुके

 

2013–2020 तक 13.38 करोड़ खर्च हुआ था, बिना किसी नियुक्ति के

(स्रोत: RTI और मीडिया रिपोर्ट)

 

 

बड़ा सवाल: जब ऑफिस में ‘बॉस’ ही नहीं, तो खर्च क्यों?

 

सवाल उठता है कि:

जब कोई लोकायुक्त ही नहीं है तो ये गाड़ियां किसके लिए चल रही हैं?

विज्ञापन किस चीज़ का हो रहा है?

 

और अगर 7 कर्मचारी ही बचे हैं, तो उनके लिए इतना मोटा बजट क्यों?

 

 

किसान मंच का हमला

 

उत्तराखंड किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा:

 

> “यह जनता के पैसे की बर्बादी है। जब कोई काम ही नहीं हो रहा, तो इतना भारी भरकम खर्च क्यों किया जा रहा है? ये भ्रष्टाचार को संरक्षण देना नहीं तो और क्या है?”

 

 

निष्कर्ष: ‘लोकायुक्त’ की कुर्सी खाली, फाइलें धूल खा रहीं, लेकिन सरकारी खजाना खाली किया जा रहा है!

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